मैं अब थक चुकी हूँ
नफरत नाइंसाफी नहीं सही जाती अब।
बस बहुत हो चुका
अब मैं खामोश नहीं रहूंगी,
लोगों के ताने नहीं सहूंगी,
क्योंकि मैं इंसान हूँ, कोई मिट्टी की मूरत नहीं।
औरत हूँ तो क्या हुआ, मैं कमज़ोर नहीं।
सदिओं से मुझे दबाया गया
चार दीवारी में बिठाया गया
ज्ञान के प्रकाश से रखा दूर
समझ लिया मुझे मजबूर,
प्यार आया तो पुचकार लिया
गुस्से से मुझे धितकार दिया।
बस! अब इस बदसूलुखी का अंत होगा
और होगा एक नया आग़ाज़
नय दौर का सूरज जल्द उगेगा
आएगा मेरे जीवन में नया प्रकाश
क्योंकि मैं अब और नहीं सहूंगी,
खामोश अब मैं नहीं रहूंगी।
ऋद्धि