Sunday, 2 July 2017

क्या कभी ज़िन्दगी को करीब से देखा है ?

क्या कभी ज़िन्दगी को करीब से देखा है?
कभी सोचा है कैसी होती है ज़िन्दगी ?
सुना था की ज़िन्दगी हसीं होती है,
हँसती  मुस्कुराती होती है
आज पता चला कितनी भूखी होती है ज़िन्दगी।

सड़कों पर नंगे पाओं भागती,
दो वक़्त की रोटी को तरस्ती,
धूप में तपती ज़िन्दगी।

रेड लाइट के कोने में हाथ फैलाती ,
कूड़े के ढ़ेर को छाँटती,
फुट पाथ पर सोती ज़िन्दगी।

ख़ुशी की उम्मीद में तरसती ,
नन्हे हाथों से झूठन समेटती,
पाई पाई की मोहताज ज़िन्दगी
क्या कभी देखी है तुमने ?

वो महलों में नहीं बसती
वो बस्ती है झुगिओं में , फुट पाथ पर
पेड़ के नीचे , खुले आसमान के नीचे।
ऋद्धि 

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