एक अनसुलझी पहेली
ऋद्धि नन्दा अरोड़ा
वो मनचाही, मनचली,
तितलिओं में रंग भरती,
बादलों के पीछे भागती,
खुशीयां फैलाती,
डेखो वो उड़ चली।
कभी इस डाल, कभी उस डाल
सपनों की उड़ान भरती,
गुब्बारों के पीछे भागती
चंचल सी , नटखट
हँसती, गुद्गुदाती चली
देखो वो मनचली उड़ चली।
है कभी झांसी की रानी,
कभी आँख का पानी,
कभी राइ का पहाड़,
कभी शेर क़ी दहाड़
एक अनकही अनसुलझी सी कहाँनी,
देखो वो मनचली उड़ चली।
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