Sunday, 25 June 2017

वर्षा ऋतु


नन्ही चिड़िया जब अपने बच्चे को दाना देती है
तितली कैसे फूलों पर बैठी झूला लेती है
ओस की पहली बूँदे पत्तों पर जैसे सोतीं हैं
इखलाती-बलखाती सूरज की किरणे
जब अंगड़ाई लेती हैं,
बादल की चादर ओढ़े नहीं दिखाई देती हैं
तब छुप छुप कर गिलहरी चैन की सांसें लेती है ,
बन्दर मामा तब, इधर-उधर फुदकते हैं
कोयल भी पेड़ों पर तब मीठी बोली गाती है।
कल-कल बारिश जब हम सबको भिगाती है
झूमती फिरती सृष्टि तब नया नाच दिखाती है,
जब वर्षा ऋतु आती है , जब वर्षा ऋतु आती है।
ऋद्धि

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