Tuesday, 5 September 2017

मैं मैं रोज़ एक नया मुखौटा पहनती हूँ


मैं रोज़ एक नया मुखौटा पहनती हूँ
चेहरे पर एक नया चेहरा लगाती हूँ
ग़म को छुपाने के लिए खुशी का मुखौटा
आँसूं छुपाने के लिए हँसी का मुखौटा
निराशा को छुपाने के लिए आशा का मुखौटा
और गुस्से को छुपाने के लिए पहनती हूँ शांति का मुखौटा।
और चल पड़ती हूँ अपने सफर पर
एक सकारात्मक सोच के साथ
चेहरे पर एक नई मुस्कुराहट लिए
दिल में नई उमंग लिए
अपनी मंज़िल की ओर।
ऋद्धि 

No comments:

Post a Comment

एक  अनसुलझी पहेली                                     ऋद्धि नन्दा अरोड़ा  वो  मनचाही, मनचली, तितलिओं में रंग भरती, बादलों के पीछे भागती, खुशी...