Thursday, 25 May 2017

काश तुम लौट आते

काश तुम लौट आते
किसी अपने के चले जाने के बाद उसकी यादें भी किसी ख़ज़ाने की तरह लगती हैं , बेहद कीमती। इन यादों को हम हमेशा बटोर कर रखना चाहते हैं। आइए यादों के एक  सफर पर चलते हैं।

तुम्हारा अक्स हर चीज़ में दिखता है
टेबल पर रखी अख़बारों में ,
चाय के खाली कप में,
आँगन में रखे उन पौधों में
जिन्हें तुम बड़े प्यार से सींचते थे।
यादों के पन्नों को जब पलटती  हूँ ,
तो तुम मुझे वहीँ खड़े नज़र आते हो
हस्ते , मुस्कुराते , खुशियाँ फैलाते।
जैसे कल ही की बात हो,
जब मैं नन्ही परी बन तुम्हारी गोद में खेलती थी
तुम्हारा हाथ पकड़ कर स्कूल को जाती थी
हर ज़िद को कैसे मनवा लेती थी
खेल खेल में तुम मुझसे हार जाया करते थे
गुड़िया-गुड़िया कहकर कैसे गले लग जाय करते थे
पढाई ना करने पर कैसे मुझे डांटते थे
वो सब पन्ने अभी भी वैसे के वैसे खुले हैं
बस अब तुम नहीं हो ,
पर यादों के सफ़र पर मैं अब भी अक्सर निकल जाया करती हूँ
क्यों कि तुम्हारा अक्स हर चीज़ में दिखता है।


ऋद्धि

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